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Pradeep Singh Chamyal

Romance

3  

Pradeep Singh Chamyal

Romance

इक दिन तुम भी थक जाओगी

इक दिन तुम भी थक जाओगी

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इक दिन तुम भी थक जाओगी,

इक दिन हम भी हारेंगे।

इक दिन तुम भी कह दोगी,

इक दिन हम भी मानेंगे।

प्रेम धरा और अम्बर के,

हम गीत क्षितिज हो सकते थे,

तुम मेरे हो सकते थे,

हम तेरे हो सकते थे।


था हमको ये ज्ञात नहीं,

कि लेन-देन की दुनिया में,

बस देना भी होता है।

प्रेम पंथ में एक पथिक को

भोर जले से सांझ पहर,

दिनकर भी सहना होता है।


छूटे रस्तों पर कब तक,

हम तुम को और पुकारेंगे।


अपना पथ आप बनाने वाले,

तुम अविचल अपने पथ पर,

बोलो कितना दूर गए।

उन्मुक्त गगन में उड़ने वाले,

तुम एका ही उड़ते-उड़ते,

क्यों थक कर इतना चूर हुए।


अपने अपने रस्तों पर,

हम कब तक मन को मारेंगे।


इक-दूजे के पूरक लेकिन,

सौ टुकड़ों में बंटे हुए,

कब इक छोर निहारेंगे।

इक दिन तुम भी थक जाओगी।

इक दिन हम भी हारेंगे।


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