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Hari Shukla

Romance

5  

Hari Shukla

Romance

प्रिय प्रतीक्षा

प्रिय प्रतीक्षा

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वन में, तन-मन में अलि गुंजित,

लिपट विटप उर लता सुवासित,

पात पात प्रतीति परिभाषित,

है तुम बिन फागुन अभिशापित।


कण-कण में है प्रीति, समर्पण,

सजी धरा झांके नभ दर्पण,

तरु पल्लव नव किसलय कोपल,

कू कू हूक उठाती कोयल ।


प्रमुदित पुष्प करें अपमानित।

है तुम बिन फागुन अभिशापित।‌।


जल थल नभ फैला नवचेतन,

चहुंदिशि प्रेम प्रणय प्रतिवेदन,

निर्झर नयनों का नेह निमंत्रण,

किसे निवेदित करें निवेदन ?


कठिन हृदय रखना अनुशासित,

हैं तुम बिन फागुन अभिशापित।


आम्र बौर प्रति ठौर हैं झूले,

मधुकर दौड़ पराग वसूलें,

लह-लह फसलें, मह-मह महकें,

रह-रह, चह-चह चिड़ियां चहकें,


जन-जन दृगन प्रेम अनुनादित,

है तुम बिन फागुन अभिशापित।



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