प्रिय प्रतीक्षा
प्रिय प्रतीक्षा
वन में, तन-मन में अलि गुंजित,
लिपट विटप उर लता सुवासित,
पात पात प्रतीति परिभाषित,
है तुम बिन फागुन अभिशापित।
कण-कण में है प्रीति, समर्पण,
सजी धरा झांके नभ दर्पण,
तरु पल्लव नव किसलय कोपल,
कू कू हूक उठाती कोयल ।
प्रमुदित पुष्प करें अपमानित।
है तुम बिन फागुन अभिशापित।।
जल थल नभ फैला नवचेतन,
चहुंदिशि प्रेम प्रणय प्रतिवेदन,
निर्झर नयनों का नेह निमंत्रण,
किसे निवेदित करें निवेदन ?
कठिन हृदय रखना अनुशासित,
हैं तुम बिन फागुन अभिशापित।
आम्र बौर प्रति ठौर हैं झूले,
मधुकर दौड़ पराग वसूलें,
लह-लह फसलें, मह-मह महकें,
रह-रह, चह-चह चिड़ियां चहकें,
जन-जन दृगन प्रेम अनुनादित,
है तुम बिन फागुन अभिशापित।