" अनगिन ख्वाब सजे मेरे "
" अनगिन ख्वाब सजे मेरे "
खिले पँखुरिया ज्यों गुलाब की ,
ऐसे अधर खिले तेरे !
बँधी टकटकी है नज़रों की ,
अनगिन ख्वाब सजे मेरे !!
आनन पर छाई लाली है ,
पलकों पर है लाज पली !
लटें चूमती रुख़सारों को ,
दाँतों उँगली दबी भली !
ग्रीवा जब जब तनी दर्प से ,
स्वाभिमान को है टेरे !!
नहीं कलाई सूनी सूनी ,
कंगन हैं , काया कंचन !
हृदय हिलोरें लेता है जब ,
आँचल इठलाता हर क्षण !
कमर हिरनिया सी लचके है ,
रूप रंग के हैं डेरे !!
पैर , हथेली , हिना रची है ,
पाजेबों की रुनझुन है !
बोल अधर से जब जब फूटे ,
मधुर छंद की गुनगुन है !
मौन निमंत्रण जब जब पाया ,
व्याकुल मन हमको घेरे !!
नयन नयन से टकराए जब ,
हुए मूक अनुबंध कई !
हाथ बढ़ाया तुमने आगे ,
टूट गए कस बंध कई !
मधुर संदेशे मिले मिलन के ,
लगे गली में है फेरे !!