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bhagawati vyas

Romance

5.0  

bhagawati vyas

Romance

" अनगिन ख्वाब सजे मेरे "

" अनगिन ख्वाब सजे मेरे "

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खिले पँखुरिया ज्यों गुलाब की ,

ऐसे अधर खिले तेरे !

बँधी टकटकी है नज़रों की ,

अनगिन ख्वाब सजे मेरे !!


आनन पर छाई लाली है ,

पलकों पर है लाज पली !

लटें चूमती रुख़सारों को ,

दाँतों उँगली दबी भली !

ग्रीवा जब जब तनी दर्प से ,

स्वाभिमान को है टेरे !!


नहीं कलाई सूनी सूनी ,

कंगन हैं , काया कंचन !

हृदय हिलोरें लेता है जब ,

आँचल इठलाता हर क्षण !

कमर हिरनिया सी लचके है ,

रूप रंग के हैं डेरे !!


पैर , हथेली , हिना रची है ,

पाजेबों की रुनझुन है !

बोल अधर से जब जब फूटे ,

मधुर छंद की गुनगुन है !

मौन निमंत्रण जब जब पाया ,

व्याकुल मन हमको घेरे !!


नयन नयन से टकराए जब ,

हुए मूक अनुबंध कई !

हाथ बढ़ाया तुमने आगे ,

टूट गए कस बंध कई !

मधुर संदेशे मिले मिलन के ,

लगे गली में है फेरे !!



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