कांटो सा चुभता इश्क
कांटो सा चुभता इश्क
देखा मैंने कई बार जब हद से गुजर जाता है इश्क,
कांटों की तरह दिल में चुभता- सा जाता है इश्क,
इस डगर ठोकरें खाकर भी कुछ नहीं मिलता यारों,
फूलों का दामन छोड़ कांटों से नेह लगाता है इश्क,
आशा की बगिया में लगाए सपने भी टूट जाते हैं यहाँ,
दिल को बहलाकर झूठी प्रीत हमसे जताता है इश्क,
चंद कलियाँ चुराकर बागों से वो हमसे दिल लगाते हैं,
पास रहकर भी दूरियों का एहसास दिखाता है इश्कII