सुकूँ
सुकूँ


शहर की भीड़ में जाने
कितने भटकते रहे
पर घर में अपनों के बीच ही
मिलता है सुकूँ
चाहे कितनी भी हरियाली
लगा लो घरों में
प्रकृति के आलिंगन में ही
मिलता है सुकूँ
पूरा दिन व्यस्त रहते
मनचाहे काम में हम
पर प्रियजनों के साथ ही
मिलता है सुकूँ
कितने वृक्ष काट दिए हैं
हमने विकास हेतु
पर आज भी उसकी छाया में ही
मिलता है सुकूँ