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Minal Aggarwal

Abstract

5  

Minal Aggarwal

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एक अनंत यात्रा है समय को साथ लिए

एक अनंत यात्रा है समय को साथ लिए

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मैं या हर कोई 

अपने जीवन में 

एक सफर ही तो तय कर रहा है 

एक लम्बा सफर है 

एक अनंत यात्रा है 

समय को साथ लिए 

मैं समय के पीछे हूं या 

समय मेरे पीछे है या 

दोनों साथ साथ चल रहे हैं 

यह मुझे समझ नहीं आता 

इतना समझने की जरूरत भी 

क्या है 

इतनी गहराई में उतरने की 

आवश्यकता क्या है 

इतनी ताकत भी नहीं बची है 

अब तो मुझ में लेकिन 

मुझे यह शत प्रतिशत 

बिना किसी के बताये या 

ज्ञान के किताबों को पढ़कर या 

इशारे के 

यह भली भांति समझ आ रहा है कि 

समय मेरी मुट्ठी से 

रेत की तरह ही फिसलता चला जा 

रहा है 

मैं चाहती हूं कि 

यह ठहर जाये 

कुछ पल के लिए 

मैं इसे कैद कर लूं 

एक परिन्दे की तरह 

अपने घर में एक खूंटी से लटके 

पिंजड़े में 

इसे पालतू बना लूं 

अपना बना लूं 

इसे गोद ले लूं 

अपनी छाती से लगा लूं 

इसे अपनी परछाई बना लूं 

दिन रात यह मेरे साथ चले 

मेरे साथ उठे बैठे 

सोये जगे 

मैं कहूं तो रुके 

मैं कहूं तो चले लेकिन 

यह तो एक शरारती बच्चे के 

समान है 

यह मेरी सुनता ही कहां है 

लेकिन फिर भी मुझे बहुत प्यारा है 

इसके बिना न मेरा एक पल गुजारा है 

यह मेरे अतीत के जख्मों को भी 

कुरेदता है 

मुझे कई बार बहुत रुलाता है, 

सताता है लेकिन 

चलो यह भी अच्छा है कि 

मेरे मन का गुबार निकाल 

देता है 

मुझे हवा सा हल्का महसूस कराता है 

अधिकतर तो यह मुझे 

अतीत की अति सुंदर छवियां 

दिखाता है 

मुझे प्रसन्न करता है 

आनंदित करता है 

मेरे मन में उमंग का 

एक गुब्बारा फुला देता है 

ऐ समय 

चल तू अपनी ही चाल चल 

अपनी मनचाही दिशा में 

बह 

अपनी मंजिल की ओर 

कदम बढ़ाता रह 

मैं तेरी रजा में

खुश हूं 

तुझे पसंद करती हूं 

तुझसे हर तरह से राजी हूं 

तेरी भावनाओं का ख्याल है 

मुझे 

तेरे साथ ही मैं हमेशा 

रहना चाहती हूं और 

तेरी अंगुलि पकड़कर 

तू मुझे जहां कहीं ले जाना 

चाहे 

वहां बिना किसी संशय के 

बिना किसी शर्त, 

बिना किसी संकोच के 

जाना चाहती हूं।


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