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Minal Aggarwal

Others

4  

Minal Aggarwal

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एक बड़े हरे पत्ते पर बैठकर

एक बड़े हरे पत्ते पर बैठकर

1 min
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यह हरियाली मन को 

कितना भाती है 

एक बुझे हुए 

जले से 

काले धुएं से भरे मन को भी 

हरा भरा 

तरोताजा 

फिर से नया कर देती है 

एक नई ऊर्जा और स्फूर्ति से 

भर देती है 

ऐसा लगता है कि 

जैसे कहीं इस संसार में फिर से 

जन्म ले लिया 

आज यह दिल कर रहा है कि 

एक बड़े हरे पत्ते पर बैठकर 

किसी नदी की जलधारा पर 

तैरते हुए 

एक नाव सी 

कहीं दूर निकल जाऊं 

आज कुछ अपने मन का 

मैं पाऊं 

जो कुछ पीछे छूट गया 

उसको मैं देख पाऊं 

अपने सपनों को साकार कर पाऊं 

अपनी मंजिल के पंख छू पाऊं 

वहां पहुंचकर फिर एक पंछी सी 

भी उड़ पाऊं 

अपने बिछड़ों से मिल पाऊं 

उन्हें यह कह पाऊं कि 

मैं उन्हें कितना प्यार 

करती थी 

मेरे चारों तरफ बिखरे पड़े 

छोटे छोटे हरे पत्तों पर पड़ी 

ओस की बूंदों सी ही 

फिर खुशी की एक लहर सी 

हिचकोले खाती 

ठंडी हवाओं संग 

लहराऊं।


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