एक मधुर तरंग मिट्टी के भूरे कणों सी
एक मधुर तरंग मिट्टी के भूरे कणों सी
तेरी सूरत है सांवली
तेरी अखियां कजरारी
तेरी कलाई में कत्थई रंग के
मिट्टी के कणों से बने कंगन
तेरे माथे पर सिंदूरी बिंदी के
मध्य एक मोती भूरा सा
तेरे लबों से निकलता
तेरी मुस्कुराहट का तीर
बना हुआ एक लकड़ी का
रंग उसका तेरी मातृभूमि की
भूरी मिट्टी सा
तेरे बाल भी अधिकतर काले
रंग के लेकिन
कहीं बीच में से भूरे भी
वह ऐसे ही अच्छे लग रहे
न रंगना उन्हें किसी और
रंग में
जो कुछ हो अपने पास
प्रकृति द्वारा प्रदत
वही सर्वोत्तम
बाकी सब मिथ्या
यह जमीन भूरी मिट्टी से पटी
इस पर नहीं होकर गुजरा
कोई शायद अभी
मैं धर रही अपने कोमल
पांवों को
इसके कठोर धरातल पर
महसूस कर रही कि
जैसे इसकी सोंधी सोंधी
खुशबू इसके कत्थई रंग
के साथ ही प्रवेश कर रही
मेरे जिस्म के हर अंग में
एक मधुर तरंग मिट्टी के भूरे कणों सी
बजाती।