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मिली साहा

Romance

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मिली साहा

Romance

प्रेम दीवानी राधिका

प्रेम दीवानी राधिका

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राधिका रचाए रास कान्हा की याद में,

निर्मोही हुए कान्हा सुध भी लेने ना आए,

कैसे आते कर्तव्यों की डोर से वो थे जो बंधे।


चले कर्तव्य की राह कान्हा राधे से दूर,

समझे है राधे की पीड़ा फिर भी हैं मजबूर,

कहना तो बहुत कुछ था पर पर कह ना सके।


कान्हा की याद में जोगन हुई प्रेम दीवानी,

बेसुध यहांँ वहांँ ढूंढे है कन्हैया को राधा रानी,

बिन अपने कान्हा, कहांँ अब रास भी रास आए।


हुए द्वारकाधीश कान्हा वृंदावन है तुम बिन सूना,

कितने बरस गुज़र गए कब होगा यहांँ तुम्हारा आना,

तुम बिन बेरंग सी है ये जिंदगी कान्हा श्रृंगार भी न भाए।


कौन सुनाए मुरली की धुन किससे करूंँ बतियांँ,

दिन रैन तुम्हें ही पुकारूँ कान्हा राह तके है अखियांँ,

तन्हा व्याकुल ये हृदय मेरा पल-पल बस तुम्हें ही पुकारे।


जी तो चाहे यही दौड़ी चली आऊँ पास तुम्हारे,

आखिर कब तक जिऊंँ मैं कान्हा यूंँ यादों के सहारे,

कह दो एक बार जो कि आओगे तो कर लूँ मैं श्रृंगार सारे।


प्रीत रंग में रंग दो ख़त्म कर दो मेरा सूनापन,

अब सही नहीं जाती है कान्हा विरह की यह तपन,

बता दो ओ सांवरे कोई ऐसी राह जो तुम तक ले जाए।


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