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Parul Agarwal Mittal

Romance

4.0  

Parul Agarwal Mittal

Romance

नवगीत

नवगीत

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वेदना अंतस में गहरी 

फिर भी अश्रु गा रहे हैं

भूलकर आगे बढ़े तुम

हम तुम्ही को चाह रहे हैं


हास और परिहास के क्षण,मन में उठती भावनाएं

यूं कदाचित पास थे तुम, मौन थी संभावनाएं

खेल नयनों ने भी खेला , अधरों पर मुस्कान थी

हाथ थामा हाथ में जब , ह्रदय में अटकी जान थी


याद थे सातों वचन 

मन ही मन दोहरा रहे हैं

भूलकर आगे बढ़े तुम

हम तुम्ही को चाह रहे हैं ।


फूल सा मन जब खिला ,तब अंधेरी रात थी

 कालिमा थी भाग्य की या,शुभ्रता

की आस थी

प्रेम में होकर विकल ,और तुमको चाहकर

सोचती हूं क्यों अधूरा,रह गया अपना मिलन


सात जन्मों के सफर पर

हम अकेले जा रहे है

भूलकर आगे बढ़े तुम

हम तुम्ही को चाह रहे हैं।


मौन की पीड़ा अनोखी ,और मन पर बोझ है

झेलकर वनवास प्रियतम,ये विरह की सोच है

राहु केतु और शनि की सब दशाएं कह रही

मिल चुके गुण दोष सारे, फिर व्यथा क्यों सह रही


सांस तो आती रहेंगी

वो हृदय से जा रहे हैं

भूलकर आगे बढ़े तुम

हम तुम्ही को चाह रहे हैं।



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