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Rajvinder Kaur Kaur

Romance

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Rajvinder Kaur Kaur

Romance

80 वें साल में हो तुम

80 वें साल में हो तुम

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आँखे ही बंद हुईं थीं

नींद में

कि तुम दिख गए

तुम्हारी 

कनपटियों पर

चांदी सी सफेदी 

नजर आई।


शायद 80 वें

साल में हो तुम

तुम्हारे चेहरे पर 

कभी कभी

हरकत ला रही है 

बुढ़ापे वाली खाँसी।


आँखे उतनी ही 

आकर्षक 

जितनी हुआ

करती थीं।


नजर का चश्मा

चढ़ गया है 

लेकिन

ध्यान से देखूँ 

तो कुछ बोलती सी हैं

तुम्हारी आँखें।


कमर से थोड़ा

झुक गए हो

हाँ लम्बाई बुढ़ापे में 

ये परेशानी तो लाती ही है

मुस्कुराहट में आज भी 

वही कंजूसी है।


मुस्कुराते हो तो

और भी आकर्षक लगते हो

लेकिन

आज भी चेहरे पर

गुस्सा बहुत भाता है।


कितना अजीब लगता है ना

जब कोई कहे

कि मैं तुम्हारे 

गुस्से की क़ायल हूँ।


गुस्से में तुम ज्यादा 

खूबसूरत लगते हो

सच कहूँ तो

तुम्हारा ये एटीट्यूड

जानलेवा होता था।


अब गुस्से में 

चिड़चिड़ापन भी

मिल गया है

हाँ मैं कहूँ तो 

ये भी तुम पर जँचता है।


गले में डोरी से

टँगे चश्में को

स्टडी टेबल पर ढूँढ़ रहे हो

यानि

भूलने भी लगे हो।


मेरी हँसी थम नहीं रही

मन हुआ कि

उठकर तुम्हारा चश्मा

हाथ में दे दूँ

और एक नीरव कौतूहल से

मेरा चेहरा उतर गया।


कहीं तुम

मेरा नाम भी तो नहीं

भूल गए

खुली आँखों से

आँसुओं के झरने

गालों के रेगिस्तान में फैल गए।


इत्मिनान इतना कि

स्वप्न में थी मैं 

और तुम 

अभी चालीसवें में हो।


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