प्यार की पहली वर्षगांठ
प्यार की पहली वर्षगांठ
ज़िंदगी की किस धुन पर
आज झूम रहा है दिल
कुछ तो खास है..! क्या है?
जो फ़िज़ाओं में महक है कुछ अनूठी
वो दूर हरी शाख पर बैठी बुलबुल
चहकते चिढ़ा रही है मुझे..!
समंदर की मौजे दावत देती
चली आ रही है गीली रेत पे
मेरे पदचाप को धोती
दस्तक दी है आज सुबह के
पहले सपने में पहचाने कदमों ने,
मन की कुंड़ी खटखटाते बंजारे
ख्यालात ठहर गए हैं एक मध
मीठे अहसास पर..!
ओह..आज वर्षगांठ है
तेरे मेरे मिलन की,
बैशाखी दुपहरी में गली के मोड़ पर
टकराई थी आँखों की कशिश मेरी
तेरी कातील निगाहों से..!
बंद दिलों की खिड़कियाँ खुली
झाँके हम तुम एक साथ एक
दूसरे के दिल में बसे उसी पल..!
उस पल का जश्न कैसे ना मनाऊँ
मेरे दिल की दहलीज़ पर तुम्हारे
कदमों का आगमन,
बदल गया मौसम मेरी ज़िंदगी का
ऐसे, जैसे आग झरते जेठ में
सावन की फूहार से तुम बरसे
मेरे उर आँगन में,
ये लो लाल गुलाब के गुच्छे,
मुबारक हो तुम्हें भी
अपने प्यार की पहली तिथि..!