यादों की गुल्लक
यादों की गुल्लक
यादों की गुल्लक से लेकर आई हूँ किस्सा एक खास
सतरंगी सावन के दिन थे रिमझिम हो रही थी बरसात
सरसर सरसर पवन चली थी घटाएं झूमकर बरसी थीं
दूर कहीं मुरली की धुन पर कोई राधिका तरसी थी
धरती की प्यास बुझाने जमकर आसमां बरसा था
तेरे प्यार की बरखा को तब मेरा प्यासा मन तरसा था।

