रात की सौगात दे दो
रात की सौगात दे दो
आज जी उदास है
पास बैठो कुछ गुफ़्तगु करो,
तुम्हारे बोल की तलब है
कानों को रुसवा न करो।
लगता है युग बीत गया
तेरी ऊँगलियों के जादू को छुए
गेसूओं ने कहर ढ़ाया है,
हौले से बालों में अनामिका
घुमाओ न ज़रा।
रहो न आसपास मेरे
ज़र्रे-ज़र्रे में तुम्हें देखना चाहूँ
एक रात की सौगात दे दो,
शब भर बतियाते खुद जागूँ
न पल भर तुम्हें भी सोने दूँ।
जो लम्हें तुम संग बीते
उतने ही लम्हों को ज़िंदगी कहूँ
मनुहार पर मान जाओ,
आज की रात ठहर जाओ
लबों की तपिश पर रहम करो
नखशिख तलबगार हूँ।
अँजुरी भर चाहत मलकर
ए देव मेरे इस बुत में प्राण फूँको।