गोधूलि बेला
गोधूलि बेला
गायों बैलों की घंटी को
सुनकर ये एहसास हुआ
दिन ढला है अब तिजहर बीता
है समय भी अब ये खास हुआ।
कोई करता संध्या वंदन
कोई खलिहानों में गाए हैं
हैं पथिक जो घर से थे निकले
निज घर को लौट के आए हैं।
मजदूर श्रमिक कृषकों को भी
है कामों से विश्राम मिला
इस गगन अपरिमित विहगों को
निज नीड़ों में आराम मिला।
आंगन में बैठी है बैठक
सब चर्चा में मशगूल रहे
हुई हँसी ठिठोली जमकर के
दिन की कड़वाहट भूल रहे।
सारा दिन खेलकूद करके
बच्चे जब यूं थक जाते हैं
मां की अंचल या फिर पापा
के कन्धों पर इतराते हैं।
सूरज अब अस्त हुआ फिर से
चाँदनी होने को आई है
नभ में धूल उड़ाती गायें
गोधूलि बेला लाई हैं।
