STORYMIRROR

Shubham Mishra

Classics

4  

Shubham Mishra

Classics

वर्षा ऋतु

वर्षा ऋतु

1 min
558

देखो कैसा मौसम आया

संग में ढेरों खुशियां लाया

वन उपवन सब झूम रहे हैं

पशु पक्षी भी घूम रहे हैं


कोकिल कू कू बोल रही है

मन्द हवायें डोल रहीं हैं

मन प्रफुल्ल होता अति अंदर

टप टप बूंद गिरे जब सुन्दर


है आनन्द कहाँ और किसमें

बच्चे भीग रहे अब इसमें

पड़ीं फुहारें जब भी तन पे

असर करे हैं सीधे मन पे


कृष्ण घटा अंबर में छाई

भानु किरण पर रोक लगाई

कभी तड़ित है कभी है गर्जन

करेंगे सब अब जल का अर्जन


मौसम शुष्क गया अब हारा

हरियाली ने पाँव पसारा

चहक उठे हैं कृषक महान

रोपेंगे अब जमकर धान


गिरिपद से जो चली हुईं हैं

धाराएँ अब बढ़ी हुईं हैं

सरोवरों की बुझ गई प्यास

वर्षण सबके लिए है खास


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Classics