श्रीमद्भागवत-२४१; चाणूर, मुष्टिक आदि पहलवानों का तथा कंस का उद्धार
श्रीमद्भागवत-२४१; चाणूर, मुष्टिक आदि पहलवानों का तथा कंस का उद्धार


श्री शुकदेव जी कहते हैं परीक्षित
भगवान ने तब संकल्प कर लिया
कि चाणूर, मुष्टिक आदि का
वध कर उन्हें मुक्ति दे दूँगा ।
कृष्ण चाणूर से भिड़ गए और
बलराम जी भिड़ गए मुष्टिक से
अपने अपने जोड़ीदार को
पछाड़ देने की चेष्टा करते ।
परीक्षित, दंगल देखने के लिए
नगर की महिलाएँ भी आयी थीं
‘ अन्याय, अनर्थ ये कंस कर रहा ‘
आपस में ये बातें कहने लगीं ।
कहें कि पहलवानों से अपने
युद्ध करा रहा निर्बल बालकों का
पहलवान वो पर्वत समान लगें
इन दोनों की तो किशोर अवस्था ।
अत्यन्त सुकुमार एक एक अंग इनका
लोग यहाँपर इकट्ठे हुए जो
धर्मोलंघन्न का पाप लगेगा उन्हें
पाप लगेगा हमें भी तो ।
यहाँ से चला जाना चाहिए क्योंकि
जहां अधर्म की प्रधानता हो
वहाँ कभी नहीं रहना चाहिए
शास्त्रों का निषेध है ये तो ‘ ।
देखें वे कि कृष्ण के मुख पर
पसीने की बूँदे शोभा दें ऐसी
जैसे कमलकोश पर बूँदें
शोभायमान हो रहीं जल की ।
देखो सखियों, बलराम का मुख
लाल हो रहा क्रोध के मारे
सखी, परम पवित्र धन्य है
सच पूछो तो व्रजभूमि ये ।
क्योंकि मनुष्य के वेष में रहते
पुरुषोत्तम वहाँ पर दोनों ये
बांसुरी बजाएँ, गोएँ चराएँ वहाँ
शंकर, लक्ष्मी जिनकी पूजा करें ।
सखी, पता नहीं इन गोपियों ने
कौन सी तपस्या की कि वे
इनकी मुख माधुरी का दर्शन
नित्य निरन्तर करतीं नेत्रों से ।
संसार या इसके परे किसी का भी
रूप इस रूप के समान नहीं
इस रूप को देखते रहते भी
कभी मन को तृप्ति नहीं होती ।
क्योंकि प्रतिक्षण नया होता जाता
नित्य नूतन, दर्शन दुर्लभ इसका
ब्रज की गोपियाँ धन्य हैं
दर्शन इसका करती रहतीं सदा ।
कृष्ण में चित लगा रहता उनका
जिसके कारण उनके हृदय में
आंसुओं के कारण गदगद कंठ से
उन्ही की लीला का गान करें वे ।
उठते बैठते काम करते हुए
गुणों का गान वो करें कृष्ण के
दौड़ पड़ें बांसुरी सुन उनकी
मुख निहारक़र विह्वल होतीं वे ।
गोपियाँ सचमुच परम पुण्यवती हैं
स्त्रियाँ कर रहीं जब बातें ये
उसी समय शत्रुओं को मारने का
निश्चय किया श्री कृष्ण ने ।
निकट ही वासुदेव, देवकी क़ैद थे
स्त्रियों की बातें सुनी उन्होंने
दोनो शोक से विह्वल हो गए
हृदय में पीड़ा हुई उनके ।
क्योंकि नहीं जानते थे वे
पुत्रों के बल वीर्य को
कृष्ण तब चाणूर से भिड़ गए
बलराम मार रहे मुष्टिक को ।
अंग प्रत्यंग भगवान के उस समय
वज्र के समान हो रहे
चाणूर ने प्रहार किया छाती पर
भगवान ने दोनों हाथ पकड़ लिए ।
भुजाओं से पकड़ मारा धरती पर
प्राण उसके निकल गए तभी
बलराम ने तमाचा मारा मुष्टिक को
पृथ्वी पर गिर पड़ा वो भी ।
उसको मारने के बाद बलराम ने
कूट को भी मार दिया
पैर की ठोकर से कृष्ण ने
शल का सिर धड़ से अलग किया ।
तोशल के तिनके की तरह
चीरकर दो टुकड़े कर दिए
बचे हुए पहलवान जो थे
डर के मारे भाग खड़े हुए ।
सभी दर्शक आनंद से झूम उठे
परंतु कंस चिढ़ गया और भी
सैनिकों को अपने आज्ञा दी कि
निकालो नगर से दोनों को अभी ।
गोपों का सारा धन छीन लो
और क़ैद कर लो नन्द को
वासुदेव को मार डालो और
उग्रसेन को भी ज़िंदा मत छोडो ।
जब कंस ऐसा कह रहा
कृष्ण बहुत कुपित हुए उससे
उसके उसी मंच पर जा चढ़े
उछल कर बड़ी फूर्ति से ।
अपने मृत्यरूप भगवान कृष्ण को
सामने खड़ा देखा कंस ने
हाथ में तलवार उठा ली
भगवान ने तब पकड़ लिया उसे ।
कंस का मुकुट गिर गया
भगवान ने उसके केश पकड़ लिए
मंच से नीचे गिरा दिया
उसके ऊपर स्वयं कूद पड़े ।
इससे उसकी मृत्यु हो गयी
घसीटा उसे धरती पर कृष्ण ने
परीक्षित, नित्य निरंतर ही कृष्ण का
वो चिन्तन करता था डर से ।
खाते पीते सोते जागते
बोलते और साँस लेते हुए
भगवान कृष्ण को देखता रहता
लिए हुए चक्र हाथ में ।
चाहे द्वेशभाव से ही क्यों ना हो
चित कृष्ण में लगा हुआ उसका
भगवान के रूप की प्राप्ति हुई उसे
जो योगियों को भी सम्भव ना ।
कंक आदि आठ छोटे भाई कंस के
बदला लेने उसकी मृत्यु का
कृष्ण, बलराम के पीछे दौड़े थे
बलराम जी ने उन सब को मार दिया ।
कंस और भाइयों की पत्नियाँ
लिपटकर रोने लगीं पतियों से
क्रियाक्रम करवाया कंस का और
भगवान ने ढाँढस बँधाया उन्हें ।
कृष्ण और बलराम जी फिर
माता पिता से मिले जेल में
बंधनों से छुड़ाया उनको
सिर रखा उनके चरणों में ।
पुत्रों के प्रणाम करने पर भी
देवकी, वासुदेव ने उन्हें
हृदय से नहीं लगाया क्योंकि
जगदीश्वर वे समझ रहे उन्हें ।
शंका हुई कि जगदीश्वर को
अपना पुत्र कैसे मानें
ये सब तो भगवान की माया
इसको तो बस वो ही जानें ।