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Ajay Singla

Classics

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Ajay Singla

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श्रीमद्भागवत-२४१; चाणूर, मुष्टिक आदि पहलवानों का तथा कंस का उद्धार

श्रीमद्भागवत-२४१; चाणूर, मुष्टिक आदि पहलवानों का तथा कंस का उद्धार

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श्री शुकदेव जी कहते हैं परीक्षित 

भगवान ने तब संकल्प कर लिया 

कि चाणूर, मुष्टिक आदि का 

वध कर उन्हें मुक्ति दे दूँगा ।


कृष्ण चाणूर से भिड़ गए और 

बलराम जी भिड़ गए मुष्टिक से 

अपने अपने जोड़ीदार को 

पछाड़ देने की चेष्टा करते ।


परीक्षित, दंगल देखने के लिए 

नगर की महिलाएँ भी आयी थीं 

‘ अन्याय, अनर्थ ये कंस कर रहा ‘

आपस में ये बातें कहने लगीं ।


कहें कि पहलवानों से अपने 

युद्ध करा रहा निर्बल बालकों का 

पहलवान वो पर्वत समान लगें 

इन दोनों की तो किशोर अवस्था ।


अत्यन्त सुकुमार एक एक अंग इनका 

लोग यहाँपर इकट्ठे हुए जो 

धर्मोलंघन्न का पाप लगेगा उन्हें 

पाप लगेगा हमें भी तो ।


यहाँ से चला जाना चाहिए क्योंकि 

जहां अधर्म की प्रधानता हो 

वहाँ कभी नहीं रहना चाहिए 

शास्त्रों का निषेध है ये तो ‘ ।


देखें वे कि कृष्ण के मुख पर 

पसीने की बूँदे शोभा दें ऐसी 

जैसे कमलकोश पर बूँदें 

शोभायमान हो रहीं जल की ।


देखो सखियों, बलराम का मुख 

लाल हो रहा क्रोध के मारे 

सखी, परम पवित्र धन्य है 

सच पूछो तो व्रजभूमि ये ।


क्योंकि मनुष्य के वेष में रहते 

पुरुषोत्तम वहाँ पर दोनों ये 

बांसुरी बजाएँ, गोएँ चराएँ वहाँ 

शंकर, लक्ष्मी जिनकी पूजा करें ।


सखी, पता नहीं इन गोपियों ने 

कौन सी तपस्या की कि वे 

इनकी मुख माधुरी का दर्शन 

नित्य निरन्तर करतीं नेत्रों से ।


संसार या इसके परे किसी का भी 

रूप इस रूप के समान नहीं 

इस रूप को देखते रहते भी 

कभी मन को तृप्ति नहीं होती ।


क्योंकि प्रतिक्षण नया होता जाता 

नित्य नूतन, दर्शन दुर्लभ इसका 

ब्रज की गोपियाँ धन्य हैं 

दर्शन इसका करती रहतीं सदा ।


कृष्ण में चित लगा रहता उनका 

जिसके कारण उनके हृदय में 

आंसुओं के कारण गदगद कंठ से 

उन्ही की लीला का गान करें वे ।


उठते बैठते काम करते हुए 

गुणों का गान वो करें कृष्ण के 

दौड़ पड़ें बांसुरी सुन उनकी 

मुख निहारक़र विह्वल होतीं वे ।


गोपियाँ सचमुच परम पुण्यवती हैं 

स्त्रियाँ कर रहीं जब बातें ये 

उसी समय शत्रुओं को मारने का 

निश्चय किया श्री कृष्ण ने ।


निकट ही वासुदेव, देवकी क़ैद थे 

स्त्रियों की बातें सुनी उन्होंने 

दोनो शोक से विह्वल हो गए 

हृदय में पीड़ा हुई उनके ।


क्योंकि नहीं जानते थे वे 

पुत्रों के बल वीर्य को 

कृष्ण तब चाणूर से भिड़ गए 

बलराम मार रहे मुष्टिक को ।


अंग प्रत्यंग भगवान के उस समय 

वज्र के समान हो रहे 

चाणूर ने प्रहार किया छाती पर 

भगवान ने दोनों हाथ पकड़ लिए । 


भुजाओं से पकड़ मारा धरती पर 

प्राण उसके निकल गए तभी 

बलराम ने तमाचा मारा मुष्टिक को 

पृथ्वी पर गिर पड़ा वो भी ।


उसको मारने के बाद बलराम ने 

कूट को भी मार दिया 

पैर की ठोकर से कृष्ण ने 

शल का सिर धड़ से अलग किया ।


तोशल के तिनके की तरह 

चीरकर दो टुकड़े कर दिए 

बचे हुए पहलवान जो थे 

डर के मारे भाग खड़े हुए ।


सभी दर्शक आनंद से झूम उठे 

परंतु कंस चिढ़ गया और भी 

सैनिकों को अपने आज्ञा दी कि

निकालो नगर से दोनों को अभी ।


गोपों का सारा धन छीन लो 

और क़ैद कर लो नन्द को 

वासुदेव को मार डालो और 

उग्रसेन को भी ज़िंदा मत छोडो ।


जब कंस ऐसा कह रहा 

कृष्ण बहुत कुपित हुए उससे 

उसके उसी मंच पर जा चढ़े 

उछल कर बड़ी फूर्ति से ।


अपने मृत्यरूप भगवान कृष्ण को 

सामने खड़ा देखा कंस ने 

हाथ में तलवार उठा ली 

भगवान ने तब पकड़ लिया उसे ।


कंस का मुकुट गिर गया 

भगवान ने उसके केश पकड़ लिए 

मंच से नीचे गिरा दिया 

उसके ऊपर स्वयं कूद पड़े ।


इससे उसकी मृत्यु हो गयी 

घसीटा उसे धरती पर कृष्ण ने 

परीक्षित, नित्य निरंतर ही कृष्ण का 

वो चिन्तन करता था डर से ।


खाते पीते सोते जागते 

बोलते और साँस लेते हुए 

भगवान कृष्ण को देखता रहता 

लिए हुए चक्र हाथ में ।


चाहे द्वेशभाव से ही क्यों ना हो 

चित कृष्ण में लगा हुआ उसका 

भगवान के रूप की प्राप्ति हुई उसे 

जो योगियों को भी सम्भव ना ।


कंक आदि आठ छोटे भाई कंस के

बदला लेने उसकी मृत्यु का 

कृष्ण, बलराम के पीछे दौड़े थे 

बलराम जी ने उन सब को मार दिया ।


कंस और भाइयों की पत्नियाँ 

लिपटकर रोने लगीं पतियों से 

क्रियाक्रम करवाया कंस का और 

भगवान ने ढाँढस बँधाया उन्हें ।


कृष्ण और बलराम जी फिर 

माता पिता से मिले जेल में 

बंधनों से छुड़ाया उनको 

सिर रखा उनके चरणों में ।


पुत्रों के प्रणाम करने पर भी 

देवकी, वासुदेव ने उन्हें 

हृदय से नहीं लगाया क्योंकि 

जगदीश्वर वे समझ रहे उन्हें ।


शंका हुई कि जगदीश्वर को 

अपना पुत्र कैसे मानें 

ये सब तो भगवान की माया 

इसको तो बस वो ही जानें ।



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