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Anurag Saxena

Abstract Classics Inspirational

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Anurag Saxena

Abstract Classics Inspirational

क्यों मैं कवि हूं

क्यों मैं कवि हूं

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शूल सा खड़ा हूं, त्रिशूल से ना डरा हूं, 

ऊंच नीच से हूं परे,

जात पात पे अब क्यों ही लड़े, 

आंधियों में भी अडिग रहूं,


लहरों के तेज़ प्रवाह से भी गिरा नहीं 

लोक लाज की परवाह भी अब कौन करे

असत्य की मोहर नहीं है

माथे पे, जो हूं, यहीं हूं, अभी हूं

 गर्व से कहता हूं, मैं एक कवि हूं।


आकाश सी ऊंची उड़ान मेरे शब्दों की है, 

परिस्थितयों से कभी हारा नहीं,

हारना मुझे गवारा नहीं

निशंक दहाड़ है मेरी,ऐसा कोई

विकार नहीं जिसके खिलाफ दहाड़ा नहीं


चुभते है जो शब्द उन्हें भी शब्दों के

शहद से कविता-बद्घ कर दिया

दिल की उड़ान से लेकर कवि होने के

स्वाभिमान तक, जो हूं, यहीं हूं, अभी हूं

गर्व से कहता हूं, मैं एक कवि हूं।


दुनिया को जब देखा अपनी नज़रों से ही देखा,

अभी तो बेरंग दुनिया में अपनी कलम से रंग भरना बाकी है

अभी तो अंधेरों में उजाले का तीर चलाना बाकी है

अभी तो सुन्न पड़े चिरागों में विश्वाश रूपी तेल पड़ना बाकी है।

अभी तो बस नाम मात्र ही हमने हुंकार ली है,

अभी तो अपनी कलम से पत्थरों में छेद करना बाकी है


सहसा नहीं है ये, एक अरसे के बाद

आज कलम में वो वेग है,जो हूं, यहीं हूं, अभी हूं

गर्व से कहता हूं, मैं एक कवि हूं।


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