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Anurag Saxena

Crime Inspirational

4.7  

Anurag Saxena

Crime Inspirational

ज़िद है - ख़त्म हो ये बलात्कार

ज़िद है - ख़त्म हो ये बलात्कार

1 min
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चेहरे तो काफ़ी ओढ़े हैं इन निगाहों ने,

पर कहने को दिल  सबका एक है

बेशर्मी की ओस तो सबके नज़रिए पर ज़मी है,

मगर कहने को आत्मा फ़िर भी सबकी नेक है।  


आँखोँ में हवस भरके कातिल है फ़िरते,

गुमसुम सी ख़ामोशी ज़ुल्मी है ज़माना,

किस बात की छाई है ये सब पर मदहोशी,

जागो वीरो सवेरे में भी क्यों है ये बेहोशी।


सिसक्ति सी मासुमियत, कंपकंपाती हुई जवानी,

तड़पते हैं अपनें, छूट जाती है बस इक निशानी,

लहरें हैं तेज़ मंज़िल अभी दूर है,

रहेगा इंतज़ार की कब खत्म होगी ये कहानी।


आंखें धोखेबाज है, कभी भी सच नहीं दिखाती

ये तो अयिना है जो सामने है वो दिख जाता है

जो शीसे के पीछे है वो हर दम छिप जाता है

ये दिल बड़ा ही सस्ता और भोला है

जो सच दिखता है उसी के लिए बिक जाता है।


कभी कोई मासूम तो कहीं कोई बहन होती है शिकार, ‌

क्यों शुमार पे है सबके ये बलात्कार,

क्या एक लड़की की कीमत है केवल इस दरिया के पार,

ज़ो भी नज़ारे होते हैं उन नजरों में हो

जाते हैं सब बेकार, हो जाते हैं सब बेकार।


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