कलयुग में वस्त्रहरण🥀
कलयुग में वस्त्रहरण🥀
वो तो महारानी पांचाली थी, याज्ञसेनि वीराँगना बलशालिनी थी,
रहता जिसका भय जग को, वो तो स्वयं अग्नि से जन्मी थी,
मैं तो फिर भी अबला हूँ, कलयुग की नीरस महिला हूँ।
रखूं जो खुद को कभी उसी दशा में, जहाँ थी बेबस लाचारी द्रुपद कन्या,
निकाय करने लगती है कंपन, उठ जाती है वेदना।
बात करूं गर मैं दोनों युगों के नर की, तो पाती कुछ ज्यादा भेद ना!
ओ, सुन अब कलयुग की कांता,
करने को तुम्हारा शोषण, न बिठाई जाएगी कोई महासभा,
करने को नग्न तुम्हें ये रचेंगे षड्यंत्र, करेंगे झूठे प्रेम का छलावा,
होगा खिलवाड़ भावनाओं से तुम्हारी, बनेगा कोई कृष्ण तो कोई शिवा!
पर ध्यान रहे अब कृष्ण आ नहीं पाएंगे, द्रौपदी की तरह तुम्हारी रक्षा कर नहीं पाएंगे,
और माधव आएं भी कैसे, तुम बुला ही नहीं पाओगी पांचाली की तरह।
मासूम दिल को छल कर तुम्हारी आँखों पर बाँधी जाएगी झूठे प्रेम की पट्टी,
तुम्हारे शोषण की बस एक यही होगी वजह।
और बच गईं इस मोह जाल से भी तुम गर,
तो अब तो तुम्हें और ज्यादा संभलकर रहना होगा,
आगे शायद इससे भी ज्यादा तुम्हें सहना होगा।
नोचा जाएगा, तो कहीं तुम्हें काटकर फेंका जाएगा,
समझकर घमंडी तुम्हें, तोड़ने को घमंड तुम्हारा, तुम्हारे ऊपर तेजाब फेंका जाएगा।
तुम्हारी इज्जत को उछाला जाएगा, तुम्हें तुम्हारी नजरों से ही गिराया जाएगा।
उसके बाद ऐसा कौन सा आरोप होगा, जिसे कालिक बनाकर तुम्हारे चरित्र पर न पोता जाएगा?
और बहुत खुशनसीब हो तुम अगर खड़ा है कोई साथ तुम्हारे, इंसाफ दिलाने को तुम्हें,
वरना उठाने से आवाज जरा भी उछल जाएगी इज्जत और ज्यादा, यह समझाकर तुम्हारी आवाज को दबाया जाएगा।
रखकर पूरे खानदान की इज्जत कंधों पर तुम्हारे, उसे गिराने का आरोप तुम पर लगाया जाएगा।
तुम्हें लगता होगा इस सबकी जिम्मेदार ये दुनिया, ये समाज है,
पर क्या कभी गौर से सुनी है तुमने, तुम्हारे अंदर दबी जो आवाज है?
सहना है एक औरत को ही सब कुछ, ये भला कहां की रिवाज है?
ये मर्यादाएं आखिर हैं क्या और किसकी हैं, यही तो सबसे बड़ा राज है।
तो चलो आओ आज सारे राज खोलें,
अपने हक की बात एक-एक करके यहां सब बोलें!
