"वफ़ा की क़ीमत या बेवफ़ाई का सिला?"
"वफ़ा की क़ीमत या बेवफ़ाई का सिला?"
वो पूछता था बार-बार मुझसे, जैसे वो मुझे खोने के डर से भी डरता हो,
प्यार जैसे खुदा से भी ज़्यादा मुझसे करता हो,
ज़िंदगी भर साथ निभाने के वादे ऐसे, जैसे वो मरना भी मेरे साथ चाहता हो,
और वो आया था घरवालों को मनाने मेरे,
निकाह की बात करने की हमारे,
पर कुछ यूं हुआ, मनाते-मनाते वो खुद मान गया,
शायद लगता है अपने ही घरवालों की बातों में आ गया,
एक पल में मेरे सारे ख़्वाब तोड़ गया वो शख्स,
एक बाप की इज़्ज़त को उसी की नज़रों में गिरा गया वो शख्स!
चला गया था जो शख्स, वो लौटकर आया है,
करके बर्बाद मुझे, वो फिर से आबाद करने के वादे साथ लाया है,
करके इज़्ज़त की नीलामी मेरी, मुझे तवायफ कहकर छोड़कर जाने वाला वो शख्स,
मुझे अपनी रानी बनाने आया है,
मैं कैसे खोल दूं दरवाज़ा वो, जिसे बंद वो खुद करके गया है,
और मुरझाए फूल फिर से खिला नहीं करते,
उसे समझाओ कोई, मुर्दे फिर से ज़िंदा हुआ नहीं करते! 🩶

