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Vivek Agarwal

Romance

4.8  

Vivek Agarwal

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प्यार करना जुर्म है तो प्यार क्यूँ करते हैं हम

प्यार करना जुर्म है तो प्यार क्यूँ करते हैं हम

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प्यार करना जुर्म है तो प्यार क्यूँ करते हैं हम।

अंत में मरना सभी को रोज क्यूँ मरते हैं हम।


इम्तिहान-ए-'इश्क़ में नाकाम जब से हो गये।

उन सवालों की कसक दिल में लिये फिरते हैं हम। 


हुक्म था हद में रहो पर भूल कर बैठे ख़ता।

आज तक उस जुर्म की कीमत बड़ी भरते हैं हम।


याद तेरी घेर लेती जब कभी मौका मिले।

गम-ख़ुशी के ज्वार-भाटे डूबते तरते हैं हम।


खूबसूरत वादियाँ थीं हम जहाँ पर थे मिले।

तू नहीं तो अब वहीं पर आग से घिरते हैं हम।


बादलों में बिजलियों सी कौंधती थी हर समय।

मुस्कुराहट वो पुरानी याद फिर करते हैं हम।


चार दिन खुशियाँ मना कर ज़िंदगी भर ग़म मिला।

तीरगी में छिप के आँसू आँख से झरते हैं हम।


खूब धोखे खा लिये हर मोड़ पर हमने यहाँ।

हर कदम अपना इधर अब फूँक कर धरते हैं हम।


डर बड़ी सबसे रूकावट डर के आगे जीत है।

और अपनी ये हिमाक़त डर से ही डरते हैं हम।


साथ चलते हम तुम्हारे इस जहाँ के छोर तक।

दो कदम पे हो जुदा अब हर कदम गिरते हैं हम।


वस्ल किस्मत में नहीं था तो जुदाई ही मिली।

दर्द को पन्नों पे लिख 'अवि' शायरी करते हैं हम।



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