अद्वैत
अद्वैत
वे दो
तपती दुपहरी में
उस पुलिन पर शान्त से बैठे हुए
ना गलबहियां
ना हाथ में हाथ
फिर भी
वे दो
एक दूजे के
पूरे के पूरे साथ
कोई शब्द नहीं
ना कोई संकेत
मात्र
बहती लहरों का शोर
और हवाओं की खुशबू
और इनमें खोए
वे दो
कोई सवाल नहीं
ना कोई जवाब
बस भीतर की कलरव
करती सी पुकार
दोनों के भीतर
अपने अपने
चट्टान से दुःख
शनैः शनै:
हवाओं के साथ सरकते गए
उनके अपने अपने दुःख
वे दो
अब थामे बैठे हैं
उन लहरों को
जो बहती हैं आँखों से
और दोनों के मन की चट्टानें
पिघलती जा रही हैं
नदी की शीतलता में
कुछ ऊष्णता सी भर गयी है
और वे दो
छोड़कर अपनी अपनी शिलाएं
चल पड़े हैं नदी से दूर
अपनी अपनी दिशाओं में
मग़र ये क्या
वे दो
अब दो नहीं
अब दिखते हैं
वो एक।