नीलवर्णी प्रेम तुम्हारा
नीलवर्णी प्रेम तुम्हारा
तुम्हारा प्रेम
नीलमोहर के वृक्ष सा लगता है मुझे
तुमने देखे होंगे ना नीलमोहर के नीले फूल
तपते झुलसते आतप में भी कैसे मधुर हास लिए होते हैं
वैसे ही तुम्हारा प्रेम
मेरे भीतर तक भर देता है हिमकणों की शीतलता
जब जीवन की उष्णताओं से झुलस रही होती हूँ मैं
सम्बन्धों के किसलय नहीं होते उसमें
ना ही कभी रिश्तों से सूखे पत्तों का ही सहारा ढूंढता है वो
वो तो तना रहता है अकेले ही
और बरबस खींच ही लेता है ध्यान
किसी का भी
हर दृष्टि महसूसती है स्पंदन उसका
और ढूंढती है अपने आसपास कोई ऐसा ही विरागी प्रेम
ज्यों नीरज पर थिरकती हों मुक्तायें
नितान्त अपृक्त होकर
अपने आनन्द में नर्तन करती सी
ऐसा ही तो है नीलमोहर सा तुम्हारा प्रेम
इसे बांध नहीं सकती मैं अपनी सीमाओं में
क्योंकि बंधन तो प्रेम का अवसान है
मुझे जीवन देना है इस प्रेम को
शाश्वत जीवन
तुम्हारे नीले फूलों से मैंने रंग ली है अपनी आत्मा
चमकता नीलवर्ण अब मेरा अस्तित्व बन गया है
अब एक बीज नीलमोहर का
उन्मुक्त वितान की साक्षी में रोप रही हूँ मैं
अपने स्नेह की मिट्टी के भीतर
सींचती रहेंगी स्मृतियां इसे अनन्तकाल तक
और मैं भी अमर हो जाऊँगी
तुम्हारे नीले फूलों में
सुनो
जिस दिन यह काया मेरी वैकुंठ हो रही हो
और पंच महाभूत ले रहे हों पुनः स्थान अपना
तुम भी थोड़ा सा चुरा लेना मुझे
मैं तुम्हारे नीले फूलों में पा लूँगी स्वयं को
तुम्हारे प्रेम से नीलवर्णी होकर।