प्रेमकभी मरता नहीं
प्रेमकभी मरता नहीं
तुम प्रेम हो
हाँ,तुम तो साक्षात् प्रेम हो
इसीलिए आज
तुम्हें विदा नहीं करूँगी
तुम्हें बो दूँगी अपने बगीचे में
और सींचती रहूँगी हर दिन
फिर करूँगी इंतज़ार
एक दिन आएगा
जब फूटेगा उसमें अंकुर
और खिलेंगी कलियां
मैं देखती रहूँगी उनका खिलना
और खिलती रहूँगी मैं भी
उनके खिलने के साथ
क्योंकि मैं जानती हूँ
उसमें तुम ही तो होंगे
मुस्कुराते
और बताते
कि प्रेम
कभी मरा नहीं करता
वो तो बोता रहता है अंकुर
फिर-फिर प्रेम का।