तुम मुझमें
तुम मुझमें
उदीयमान दीये की मखमली लौ सी,
मैं रोशन रहती हूँ,
तुम बहते हो मेरे अंदर मीठे घी की मानिंद
सराबोर मुझमें सिंचते चाहत की नमी,
हर पल जीते हो मुझमें,
मेरे दिल में धक-धक की रागिनी गाते,
मैं मचलती हूँ सात सुर-सी बजती वीणा-सी,
कोई नश्तर नहीं मेरे वज़ूद के आसपास|
एक जाल बुनते रेशमी तुम रहते हो,
निभाते एक वादा,
मेरे अस्तित्व की सुरक्षा में रखा था कभी तुमने,
तुम जलते हो हरदम ख़ातिर मेरी,
ये कैसा बंधन है ना मांग सजी मेरी,
ना फेरे हुए कोई,
बस एक बेनाम-सा रिश्ता निभाते हैं दोनों,
दो बदन एक जाँ हों जैसे|