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Suraj Kumar Sahu

Abstract Inspirational

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Suraj Kumar Sahu

Abstract Inspirational

बेकार है

बेकार है

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उस थाली का क्या? छप्पन भोग से जो सजी हो, 

अगर एक में भी जहर मिला, तो खाना बेकार हैं। 


उस पानी का क्या? जिस पर समुंदर घमंड करें, 

पी कर भी प्यास न मिटे, तो उसे पीना बेकार हैं। 


उस खाली मकान का क्या? जो अब खण्डहर हो चुका, 

मेरी बात मानो तो, उस मकान में जाना बेकार हैं। 


उस भीड़ का क्या? जो हमें देखने को इकट्ठा हो, 

कोई अपना रूठा हो, तो सबको मनाना बेकार हैं। 


उस खुशी का क्या? जो सबके गम बांटने पर मिली, 

अंदर से चोट खाये हुए को, यह जमाना बेकार हैं। 


उस आँसू का क्या? दूसरे को रूला कर जो बहें हो, 

गम बार बार मिले, तो उस गम को मिटाना बेकार हैं। 


उस जिंदगी का क्या? दूसरे के दर्द को अपना न समझे, 

सच कहूँ तो ऐसी जिंदगी को, फिर जीना बेकार हैं। 


उस मौत का क्या? चार लोग रोने वाले न मिले, 

चार कंधों के बगैर मरने पर, श्मशान जाना बेकार हैं। 


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