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Suraj Kumar Sahu

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Suraj Kumar Sahu

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उल्फत का मारा मैं

उल्फत का मारा मैं

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उल्फत का मारा मैं, 

काहे का बेचारा मैं, 

चल निभा दुश्मनी, 

न हूँ कोई यारा मैं, 


रात्रि का चाँद हूँ, 

दिन का धूप भी, 

कण हूँ धरती का तो, 

असमान का तारा मैं। 

उल्फत का मारा मैं। 


मैं जंग में जीत का, 

प्रतिक हूँ प्रीत का, 

अगर हूँ मीठा कुँआ तो, 

जल समुद्र का खारा मैं। 

उल्फत का मारा मैं। 


वादन का संगीत हूँ, 

बेसुर गाया गीत भी, 

आना न आना मर्जी तेरी, 

जब जब पुकारा मैं। 

उल्फत का मारा मैं। 


धरती में उगी घाँस तो, 

खेत का मस्त फसल हूँ, 

सख्त कानून का बंदिश, 

फिर भी अवारा मैं, 

उल्फत का मारा मैं।।



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