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Suraj Kumar Sahu

Abstract

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Suraj Kumar Sahu

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औरत की बेवफाई पर

औरत की बेवफाई पर

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और कितने जुल्म तुम हम पर करोगें, 

ऐसे रोज साजिश दौलत कम पर करोंगे, 

जिन्दगी की खुशियाँ साथ निभाने में थी, 

कब तलक गैर के लिए हमें गम पर करोंगे। 


बुरे थे तो साथ चलना छोड़ देते पहले ही, 

मुमकिन न सहारा हाथ जोड़ देते पहले ही, 

बेहतर होता कहकर जाती बेवफा फिर हम, 

बना बनाया रिश्ता को तोड़ देते पहले ही। 


लगा कलंक बेवफा न दिया सारे घर आँगन में, 

बचा यकीन अब न एक ऐसा रिश्ता पावन में, 

उनका क्या वो कहकर गये देखा नहीं आँखों, 

झूठा कहते औरत का सहारा काफी जीवन में। 


बहुत नहीं तो थोड़ा सा अहसान हमारा कर देती, 

पर्दा नहीं तो इज्जत से ऊंचा शान हमारा कर देती, 

हमें नहीं उम्मीद तेरी तू कुछ कर सकती जीवन में, 

करके कोशिश दूर गैर से बस मान हमारा कर देती। 


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