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Divya Kumawat

Abstract

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Divya Kumawat

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*समस्या*

*समस्या*

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समस्या भरे संसार में, जीना हुआ दुश्वार

एक खत्म होते ही दूजी, करने आती वार


फंसी है सारी दुनिया, उलझनों के भंवर में

चारों ओर मचा है देखो, कितना हाहाकार


जैसी भी है दुनिया, इसी में हमको जीना

करना होगा इसको, दिल से हमें स्वीकार


वजह ढूंढ़ो इसकी, कठिन हुआ क्यों जीना

क्यों है समस्याओं का, इतना बड़ा आकार


जब तक रहे पावन, जीवन भर सुख पाया

संकट आने लगे, जब से आये पाँच विकार


पहचानो जरा इन्हें, कौन बढ़ाते हैं मुश्किल

काम क्रोध लोभ मोह, और संग में अहंकार


इनसे छुटकारा पाने का, करोगे जब उपाय

समस्याओं से मुक्ति का, होगा स्वप्न साकार


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