पता ना लगे
पता ना लगे
अब जाने क्यूँ मौसम न सुहाना लगे।
तुम्हें भूल जाने में कितना जमाना लगे।
तू वफा की एक नई इबारत लिख दे।
आशिकों को बेवफाई नया तराना लगे।
वो क्या चुराएंगे मेरी शाम अब मुझसे।
सुबह कब हुई ये जिनको पता ना लगे।
लड़खड़ाते चलते रहे मंजिल की तरफ।
कब बहके वो जिनको ये ख़ता ना लगे।
कल तक थे आगोश- ए मोहब्बत मेरे।
आज ज़माने में जिनका पता ना लगे।