Sudhir Srivastava

Abstract

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Sudhir Srivastava

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रामनाम सत्य है

रामनाम सत्य है

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जीवन का अंतिम सत्य रामनाम

जिसे मानव जीवन भर

नजरंदाज कर बड़ा होशियार बनता है

सबकुछ जानते हुए भी खुद को गुमराह करता है,

अंतिम सत्य को ही पहला झूठ समझता है

सारे उल्टे सीधे काम करता,

दुनिया को बेवकूफ बनाता है

भ्रष्टाचार अनाचार, अत्याचार, लूटमार 

चोरी बेईमानी, अनेकों गलत काम करता है

नारियों का अपमान और व्यभिचार करता है

अनीति की राह पर चलकर

धन दौलत, संपत्ति के पहाड़ खड़ा कर से 

खुद को बड़ा आदमी बताता है,

निर्बल, गरीब असहायों की आह लेता है

और घमंड में चूर हो खुश होता रहता है

बेशर्मी से मुस्कराता है,

आज की तारीख में वो खुद को 

किसी शहंशाह से कम कहाँ समझता है।

जो पूर्ण सत्य है, उसे ही कोरी बकवास समझता है,

और आँख मूंद आसमान में उड़ता है।

पर उस समय जब सब कुछ होकर भी

उसके पास कुछ भी नहीं होता है,

धन दौलत ताकत शोहरत और जो भी अपने थे

तब कोई भी उसके काम नहीं आते

एक एक कर उससे दूर होते जाते हैं,

क्योंकि उन्हें पता हो चुका होता है

कि अब वो उनके किसी काम नहीं आने वाला

तब वे किसी और का द्वार खटखटाते हैं

और तब वो बीमारियों की मार

या दुश्मन के वार अथवा दुर्घटना का शिकार हो

बस! पछताता रहता है,

तब राम का नाम जुबां पे आता तो है

फिर भी वह सत्य को झुठलाता है

जाने कितनी अंतिम यात्राओं में वो गया होता

फिर भी उसके कान में राम नाम सत्य है

का स्वर नहीं घुसा होता

क्योंकि वो इस अवसर पर भी

महज औपचारिकता निभाने को उतावला होता है,

ऐसे में उसे राम नाम की सत्यता ज्ञान नहीं हो पाता

और जब उसकी शवयात्रा में 

रामनाम सत्य का औपचारिक स्वर गूंजता है

तो उसके कानों में वो भी नहीं कौंधता है,

क्योंकि उसके शरीर से उसके प्राणों का

तब पलायन हो चुका होता है,

राम नाम सत्य का ज्ञान फिर उसे कहाँ हो पाता?

और शायद इसीलिए हमें आपको भी

राम नाम की सत्यता पर विश्वास ही नहीं होता।

क्योंकि रामनाम का ज्ञान जो नहीं होता। 



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