जौहर की वेदना
जौहर की वेदना
आज पूछने लगी आत्मा राजकुंवर से, कहो महल कैसा लगता हैं
हमने जौहर किया, जलाई खुद ही चिताये, कहो महल कैसा लगता हैं
चारों तरफ है केवल ये अवशेष हमारे देखो तो जलती ये चिताये
नाज करो वो छू ना पाए केश हमारे देखो तो जलती ये सबलाये।
एक बार घूम के देखो हम बिन तुमको यह राजमहल कैसा लगता है ?
हमने जौहर किया, जलाई खुद ही चिताये, कहो महल कैसा लगता हैं ?
कल तक जिनकी किलकारी सुनकर निकला करते थे तुमको कितनी प्यारी थी
कल जिनसे महकी फुलवारी में बहका करते थे तुमको कितनी प्यारी थी
आज पुकारो ओ मेरी लाडो तेरे बिना राजमहल कैसा लगता है।
हमने जौहर किया, जलाई खुद ही चिताये, कहो महल कैसा लगता हैं
कितना तेज चमकता था चेहरे पे जब जब आती थी तुम इसी उपवन में
कितना वेग मचलता था तेरे यौवन पे जब जब लाती तुम इसी चमन में
सर्द हवाएं बहने लगती खूश्बु से महका राजमहल कैसा लगता है ?
हमने जौहर किया, जलाई खुद ही चिताये, कहो महल कैसा लगता हैं
मेरी बेटी, मेरी माता और तुम्हारा एक साथ ही यूँ चिता जलाना
मुगलो के कभी हाथ ना आने का प्रण अंतिम समय तक उसे निभाना
तुमने लिया जी यह निर्णय कैसा,अब यह राजमहल भी सूना लगता है।
हमने जौहर किया, जलाई खुद ही चिताये, कहो महल कैसा लगता हैं ?
