माँ शारदे वंदना
माँ शारदे वंदना


शारद माँ कवि भारत के,
नित शीश झुका कर ध्यावत हैं।
ज्ञान भरो उर भीतर माँ,
कर जोर प्रभात मनावत हैं।
हाथ सदा सर पे रखना,
नव गीत सदा कवि गावत हैं।
उत्सव नित्य यहाँ रहता,
सुख जीवन का सब पावत हैं।
वास रहे चित मात सदा,
मन मूरत शारद की धर लें।
लोभ हरो छल दूर करो,
बस सत्य लिखें मन में कर लें।
राह दिखा कर नेक सदा,
निज जीवन में खुशियाँ भर लें।
सत्य सनातन धर्म यही,
दुख दोष सभी जग के हर लें।
भाव दिए तुमने हमको,
यश लेखन शक्ति हमें वर दो।
छन्द लिखें कविता लिख लें,
गुण लेखन का सब में भर दो।
जोड़ रहे कर मात सदा,
तुम ज्ञान अपार बहाकर दो।
उच्च रहे यह धाम सदा,
'शुचि' नाम बड़ा जग में कर दो।।