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Suchita Agarwal"suchisandeep" SuchiSandeep

Inspirational

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Suchita Agarwal"suchisandeep" SuchiSandeep

Inspirational

हिन्दी

हिन्दी

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(लावणी छंद)


भावों के उपवन में हिन्दी, पुष्प समान सरसती है।

निज परिचय गौरव की द्योतक, रग-रग में जो बसती है।।

सरस, सुबोध, सुकोमल, सुंदर, हिन्दी भाषा होती है।

जग अर्णव भाषाओं का पर, हिन्दी अपनी मोती है।।


प्रथम शब्द रसना पर जो था, वो हिन्दी में तुतलाया।

हँसना, रोना, प्रेम, दया, दुख, हिन्दी में खेला खाया।।

अँग्रेजी में पढ़-पढ़ हारे, समझा हिन्दी में मन ने।

फिर भी जाने क्यूँ हिन्दी को, बिसराया भारत जन ने।।


देश धर्म से नाता तोड़ा, जिसने निज भाषा छोड़ी।

हैं अपराधी भारत माँ के, जिनने मर्यादा तोड़ी।।

है अखंड भारत की शोभा, सबल पुनीत इरादों की।

हिन्दी संवादों की भाषा, मत समझो अनुवादों की।।


ये सद्ग्रन्थों की जननी है, शुचि साहित्य स्त्रोत झरना।

विस्तृत इस भंडार कुंड को, हमको रहते है भरना।।

जो पाश्चात्य दौड़ में दौड़े, दया पात्र समझो उनको।

नहीं नागरिक भारत के वो, गर्व न हिन्दी पर जिनको।।



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