STORYMIRROR

Suchita Agarwal"suchisandeep" SuchiSandeep

Fantasy

4  

Suchita Agarwal"suchisandeep" SuchiSandeep

Fantasy

गीत प्रणय के गाती हूँ

गीत प्रणय के गाती हूँ

1 min
352


जब-जब आह्लादित होता मन, गीत प्रणय के गाती हूँ,

खुशियाँ लेकर आये जो क्षण, फिर उनको जी जाती हूँ।


यादों की खुश्बू भीनी सी, बचपन उड़ती परियों सा,

यौवन चंचल भँवरे जैसा, गुड़ियों की ओढ़नियों सा।

पलकें मंद-मंद मुस्काकर, पल-पल में झपकाती हूँ।

जब-जब आह्लादित होता मन, गीत प्रणय के गाती हूँ।


कहने को तो प्रौढ़ हुई पर, मन भोला सा बच्चा है,

चाहे दुनिया झूठी ही हो, खुश होना तो सच्चा है।

आशाओं के दीप लिये फिर, मैं नवजीवन पाती हूँ,

जब-जब आह्लादित होता मन, गीत प्रणय के गाती हूँ।


माना अब मिलना मुश्किल है, कुछ साथी जो मेरे थे,

वो ही दिन के बने उजाले, वो सपनों को घेरे थे।

गाँवों से शहरों की दूरी, पल में तय कर आती हूँ,

जब-जब आह्लादित होता मन, गीत प्रणय के गाती हूँ।


सब कुछ संभव इस जीवन में, प्रणय बँधी इक डोरी हो,

थककर जब भी चूर हुये मन, सुनता माँ की लोरी हो।

मैं अपनी खुशियों का परचम, प्रतिदिन ही फहराती हूँ।

जब-जब आह्लादित होता मन, गीत प्रणय के गाती हूँ।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Fantasy