आओ कभी बैठो ज़रा बातें करेंगे
आओ कभी बैठो ज़रा बातें करेंगे
आओ कभी बैठो ज़रा
बातें करेंगे
मैं ही गलत था
तेरी ज़ुबानी फिर से सुनेंगे
आओ कभी बैठो ज़रा बातें करेंगे ।
मेरा बचपन और तेरी शोखियाँ
उँगलियाँ पकड़े वक़्त के दरिया में बह चले हैं कहीं
शायद कहीं मिल जाएँ
फिर उन्हें खोजा करेंगे
आओ कभी बैठो ज़रा बातें करेंगे ।
आँखों में गहरे काजल का
काला जादू जगाते थे तुम कभी
पुतलियाँ हिरन हुआ करती थी
काले दायरों के दरम्यान
उन हिरनों को फिर से देखेंगे
आओ कभी बैठो ज़रा बातें करेंगे ।
दूर साहिल हो कहीं ओर
शाम फिर भी हो करीब
तुम हो, मैं हूँ, कश्ती हो
पतवार भी फैंका करेंगे
सरे दरिया कभी ऐसा करेंगे
आओ कभी बैठो ज़रा बातें करेंगे ।
कोई जगह कोई दहर हो जहाँ
वक़्त न पंहुचा हो अभी भी
बेवक़्त पहुँचेंगे वहाँ
और बैठे रहेंगे
सोचा करेंगे, सुनते रहेंगे, बोला करेंगे
आओ कभी बैठो ज़रा बातें करेंगे ।।