होठों की खामोशी
होठों की खामोशी


ना लब कुछ बोले ना तुम कुछ बोले
हम बेहद थे अधूरे तेरे आने से अब हो गए पूरे।।
हर शाम जब वो इलायची अदरक वाली चाय बनाया करती
एक गीत ज़रा आहिस्ता आहिस्ता वो गुनगुनाती
बड़े अदब से वो सर का पल्लू संभाला करती
मेरे आने से पहले ही वो गरमा गरम चाय तैयार रखती ।।
ना लब कुछ बोले ना तुम कुछ बोले
हम बेहद थे अधूरे तेरे आने से अब हो गए हैं पूरे।
था दिल में उसके भी कुछ जो वो कभी ना कहती
मेरे खाने के डब्बे के साथ लाल गुलाब देना वो कभी ना भूलती
एक शाम मैं भी गुलाब का गुलदस्ता ले कर आया
उसे अचानक रसोई मैं ना जाने कौन सा ज़रूरी काम याद आया।।
ना लब कुछ बोले ना तुम कुछ बोले
हम बेहद थे अधूरे तेरे आने से अब हो गए है पूरे।।
मैं भी शायद गलत वक्त पर गुलाब था ले आया
वो बेहद शर्मा गई थी उसे कोई अच्छा बहाना ना याद आया
क्या इश्क़ है तुम्हें भी मैंने ये सवाल था पूछा पर उसका जवाब अभी तक ना आया
ना जाने क्यों मुझे देखते ही उसका दिल क्यों था घबराया।।
ना लब कुछ बोले ना तुम कुछ बोले
हम बेहद थे अधूरे तेरे आने से अब हो गए है पूरे।।
रोज़ भोर में ईश्वर से वो एक ही प्रार्थना थी करती
इस खूबसूरत रिश्ते की सलामती की खातिर हर मुमकिन कोशिश वो करती
मैं काफी अटपटी बाते था करता वो ख़ामोशी से बस मुझे सुनती
उसके होने से मुझे ज़िन्दगी ज़िन्दगी थी लगती।।