चाँद कहीं खोया सा
चाँद कहीं खोया सा
चांद कही खोया सा
कल रात बहुत रोई थी
सिसकते रहे रात सितारे
कल रात नही सोई थी,
रतजगी आंखों में पीड़ा
उच्छ्वासों की धुंध लिए,
नील व्योम में अश्रु गिरा
चली गई एक प्यास लिए,
दीपक भी तिलतिल जल
वातायन से मेरे राह देखता
शांत समीरण भी उद्वेलित सा
दूर क्षितिज तट रहा निहारता,
स्वप्न आए पलकों को छू कर
वापस लौट गए थे
निष्ठुर प्रियतम मेरी तरह क्या
चांद को भी
कल बहुत याद आए थे ?