अंतहीन इंतज़ार
अंतहीन इंतज़ार
तुम्हें याद तो होगी, वो बीते दिन
जब हम एक दूसरे की राह देखते थे,
घर से दूर सुवासित अमराईयों में,
और हमेशा मैं तुमसे पहले पहुँच जाता था वहाँ
और तुम अक्सर देर से।
फिर भी,
कोई सवाल तुमसे नहीं पूछता था मैं, क्योंकि
जानता था मैं की जमाने की नजरों से छुप कर आना
कितनी बड़ी बात होती है, एक लड़की के लिए।
मुझे तब भी पता था, भावनाओं की कद्र करना
और आज भी पता है, तुम्हारे मनोभाव।
मैं वैसा ही हूँ, जैसा पहले था
बिल्कुल, तुम्हारी सोच पर खरा।
मुझे ऐसा क्यों लगता है,
जब उस अमराई से गुजरता हूँ तो,
तुम अब भी मेरा इंतज़ार करती हो
जैसे पहले मैं करता था अंतहीन इंतजार
शायद, अब तुम्हें ज्ञात हो गया हो
कि इंतज़ार की घड़ियां, कितनी असहनीय होती है।
जिसका आभास तुम्हें पहले नहीं था।
लेकिन अब तुम भी इस वेदना से वाकिफ हो गए।