अकेलापन
अकेलापन
एक कोने में बैठकर कैसे गुजारें हरपल
अपनों से दूर होके, हर जगह मिला सूनापन ।
सूझता नहीं कुछ करने को ,बस काटे जा रहे दिन ।
उलझनों में फंसते हंसते , कैसे उबरे तुम्हारे बिन ।
सोचा कुछ पल के लिए ,तन्हाइयों से उबरने के लिए ।
कलम चला कर देखा ,थम सी गई सोचने के लिए ।
चिड़ियों की चहचहाहट ,कभी खिड़कियों से गुजरती ।
प्रबल भरती उन्माद से,चेहरे में चमक सी निकलती ।
बाहर निकल कर देखा ,सन्नाटा छाया था कौन ?
सब स्तब्ध एकांत दृश्य ,और विरल हो रही थी मौन ?
अकेलापन बढ़ता जा रहा था ,सूनापन काटे जा रहा था ।
सेज भी अकेले में , छटपटाहट दिए जा रहा था ।
हाथ पैरों में कितने बार ,अंगड़ाई बार-बार आ रहा था ।
सूनापन जिंदगी की ,आकुलाहट से कम नहीं था ।
अकेलेपन को दूर करने ,टी वी कूलर सब चला दिया ।
कुछ पल के लिए ठहरा सा ,धीरे से मन विचलित कर दिया।
ऊब गया मन सब चीजों से,डूब गया फिर,दूर चिंतन में ।
मन को बहलाया समझाया,गुजरा दुनिया की रीतियों से।
घर की चार दीवारों से, अंधेरा सन्नाटा छाया हुआ ।
जीवन चमकती रोशनी से,उम्मीदों की किरणें भरता हुआ।