सवाल है..
सवाल है..
सवाल है सत्ता में बैठे हुये हुक्मरानों से,
क्यों नहीं बाज आते हो फालतू बयानों से ,
जरा गरीबों की झोंपड़ी में झॉंक कर देखो ,
कैसे लड़ते हैं वो बिना सुविधा के तूफानों से ..!
हाशिये गरीबी के बढ़ते ही जा रहे हैं,
गोदामों में पड़े अनाज सड़ते ही जा रहे हैं,
आस लगा अच्छे दाम का किसान देखे राह,
साहूकार बैठे बैठे मलाई खाये जा रहे हैं ..!
जरूरत का सामान गोदाम बंद हो रहा है,
ऊंचे दामों से खरीददारी अब चंद हो रहा है,
हाल बेहाल हुई जा रही है मजबूर जनता,
क्यों नहीं मंहगाई का दानव अब मंद हो रहा है..!
सिलेंडर का भाव आसमान को छू रहा,
पेट्रोल डीजल भी ना जाने कौन पी रहा,
लगे हैं सभी मजबूरों की मजबूरी भुनाने में,
दवायें भी उपलब्ध नहीं हैं अब तो दवाखाने में...!
मध्यमवर्गीय परिवारों पर टैक्स का बोझ है,
मिलती नहीं कोई सुविधा क्या ज़रा भी खेद है,
अबूझ पहेली बन गया है ताना बाना सरकारों का,
कोई भी बैठे गद्दी पर जनता झेलती दु:ख जमानों का..!
सड़कें खस्ताहाल पुल बनते ही लगते थरथराने,
मकान के मकान बन गये एक झटके में लगते भरभराने,
हर चीज मिलावटी यहॉं कानून का भी डर नहीं,
जब सैंया हों सिपहिया तो सच का कोई घर नहीं..!
चोर चोर मौसेरे भाई अच्छाई को पहचाने कौन,
देख कर सारी गंदगी अच्छा है फिर रहना मौन ,
आशाओं के दीप जलाये एक दिन सतयुग आयेगा,
कोई तो ऐसा नृप होगा जो शासन को समझायेगा..!
स्वयं से कर शुरूआत प्रण लें भ्रष्टाचार से मुक्ति की,
जागरूक हो जनता जब समझे कीमत कर्तव्यों की,
पहले आप पहले आप में अक्सर विलम्ब हो जाता है,
वही भारत बनाना है जो सोने की चिड़िया कहलाता है..!