हमें क्या
हमें क्या
महंगाई बढ़ रही,
हाय तौबा मच रही,
सरकार की मनमानी,
टैक्सों से परेशान पेशानी,
किसान अन्न को तरस रहा,
मजदूर भूखे पेट मर रहा,
बैठ कर ऐ. सी. कमरों में,
योजनायें दब कर रह गई फाइलों में,
जिस पर भी सांसें चल रही हैं तौबा..!
चाय की चुस्कियों पर फिर चलेंगी बातें हमें क्या..!!
दवाखानों में दवायें हैं ब्लैक,
सारा सिस्टम शून्य सपाटा फ्लैट,
घूसखोर खा रहे चांदी की चम्मच से चमचम,
कोई मरे चाहे किसी का निकल रहा हो दम,
गुहार लगाते लगाते जीभ लकवाग्रस्त हो गई,
आंखें इंतजार में पथ देख काले सायों से घिर गईं,
हाथ कांपते न्याय की आस में थरथराते,
कौन सुधबुध ले यहां सब खुश हैं नकद थामते,
जिस पर भी है तुमको न्याय का इंतजार तौबा..!
मेज पर पकवानों के बीच भुखमरी की चिंता तो हमें क्या ..!!
आ रहा है रक्तरंजित अखबार प्रतिदिन,
बन रहा है इज्जत का इश्तिहार हर दिन,
दुख देख कर अफसोस करना फैशन बन गया,
मानवता को करना तार तार सत्य का रिजेक्शन हो गया,
सादगी भरा जीवन अब आउट आफ सिलेबस लगता है,
काम किसी का नाम किसी और के माथे सजता है,
यूं लगता है जैसे शर्म की लग गई हो सरे राह बोली,
बिक गई हो चौराहे पर खड़े खड़े दुल्हन की डोली,
जिस पर भी तुमको है प्यार पर एतबार तौबा..!
टूटेगा दिल तुम्हारा भी इक रोज पर उससे हमें क्या ..!!
