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वैष्णव चेतन "चिंगारी"

Tragedy

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वैष्णव चेतन "चिंगारी"

Tragedy

किसान-दिवस ( 51 )

किसान-दिवस ( 51 )

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भारत कृषि प्रधान देश में देखो आज

किसानों की क्या हालत कर दी आज,

कहते है हम सब उसको अन्नदाता

दाता होकर भी 

क्यों बना है "याचक" अन्नदाता,

क्यों घर छोड़कर....?

भटक रहा है वो आज सडकों पर ?

जिसने माटी को रौंद कर सोना बनाया

फिर क्यों......?

माँ भारती का बेटा रो रहा है आज ,

शायद कोई अंदरूनी पीड़ा से आहत है आज,

तभी तो आज कड़कती सर्दी में सड़कों पर ये,

सर्दी-गर्मी चाहे हो बरसात सदा खेतों में सदा खड़ा ये,

कभी ये अन्नदाता मेहनत से पीछे हटा नहीं,

भूखा रहा वो फ़टे-हाल नंगे बदन हमेशा रहा,

धरती का सीना चिर अन्न उगाकर वो अन्नदाता कहलाया,

रखा न कुछ अपने लिए सब कुछ देकर अन्नदाता कहलाया,

क्यों आज दिल्ली बनी है अंधी-गूंगी और बाहरी है ?

सरकार आज क्यों बनकर बेदर्द उसकी भावनाओं से यूँ खेल रही है ?

भोले-भाले किसानों से वोट मांगने हवाई-जहाज से जाने वालों,

वो ही किसान आज बैल-गाड़ी-ट्रेक्टर से तेरे दर पर आया है,

अपने कर्म-बल पर सदा विश्वास रखने वाला अपने लक्ष्य पर सदा रहा,

फिर भी केवल वो अपने कष्टों को ही शत रहा ,

अपने खेतों में दिन-रात डटा रहता 

डटकर खूब अन्न उगाता,

ऐसी क्या विपत्ति उस पर आन पड़ी जो आज सड़कों पर दिन-रात ,

सुनले ऐ ! सरकार देश की रीढ़ की हड्डी है यह,

आज किसान और जवान का आमना-सामना करवा दिया !!


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