हिंदी का जीवन अस्तित्व।
हिंदी का जीवन अस्तित्व।
पराई भाषा को दिया मान,,
अपनी भाषा को माना कूड़ेदान।
स्वतंत्रता के बाद क्या इसने पाया ?
मात्र बिंदी बन भारत माता का रूप सजाया।
श्रृंगार आधुनिक बनी पराई बोली,,
जिसने देशवासियों के हृदय में राजगद्दी तक ले ली।
संघर्ष के लिए संतानों को जोड़ने वाली माता,,
आज भी अपने अस्तित्व के लिए,
अपने ही घर में लड़ रही अकेली।
देखो! अपने ही घर में अधिकारों की जलती होली,,
एक दिवस, एक पखवाड़े का बनी रहेगी श्रंगार,
जिसमें भी शिक्षित वर्ग भर- भर के करेंगे,
परामर्शों की वर्षा पर सोच विचार,,
फिर डोली में बैठकर होगी विसर्जित,,
एक वर्ष तक रहेगी अपने ही घर से निष्कासित।
देंगे, सभी आश्वासन की माला पहनाकर विदाई
हृदय में तुम हमेशा रहोगी हमारे समाई,,
अगले वर्ष तुम्हें फिर से
सप्ताहिक त्योहार की तरह मनाएंगे,,
अपने ही घर में तुम्हें उत्कृष्ट की उपाधि देकर
सम्मान का आभूषण पहनाएंगे।
करो ! फिर से तब तक दर-दर भटक कर,,
अपने अस्तित्व की तलाश,,
दिलाती रहो अपने ही लोगों को भरोसा ,,
कि कर सकती हो तुम भी हमारा विकास।
हमारे काम अगर तुम आ पाओगी,,
तभी स्थान उच्च घर में पाओगी,,
पुकार कर कहती हिंदी तुम्हारी,,
बताओ क्या गलती है मेरी!,,
शिक्षा का धरातल देर से मैंने भी ना पाया,
फिर अपने ही घर में मेरी संतानों ने,
क्यों! ना मुझे अपनाया?
तुम थामो तो मेरा हाथ विश्वास के साथ,
मैं भी करूंगी देश का विकास।
जिसने स्वतंत्रता की सूत्र का रचा इतिहास,,
वह क्यों बन गई उपेक्षा और उपहास,
दो इसे भी खुला आकाश
यह भी करेगी ,क्षितिज तक विकास।