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Vijay Kumar parashar "साखी"

Tragedy

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Tragedy

फितरत

फितरत

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लोगों की फितरत समझ नहीं आती है

टूटे शीशे से सही तस्वीर नजर आती है


जिस पे जान से ज़्यादा भरोसा होता है

उसी से आजकल फूल पे चोट आती है


वो हृदय के ही तहखाने में छिपे होते है,

जिनसे लहूं-बूंदें बिन चोट ही आती है


लोगों की फितरत समझ नहीं आती है

टूटे शीशे से सही तस्वीर नजर आती है


जो सामने अपने मीठी वाणी बोलते है,

वो ही लोग पीछे अपनी कब्र खोदते है,


ऐसे लोग सदा दूसरों का बुरा सोचते है

पर निंदा के लिये ही वो लब खोलते है


ऐसे लोगों में बस स्वयं के अलावा साखी

किसी अन्य में अच्छाई नजर न आती है


लोगों की फितरत समझ नहीं आती है

मुँह में राम, बगल में छूरी नजर आती है


बुरी नियत वाले, पागल कुत्ते से तू दूर रह,

इन्हें दूर रखने से साखी तेरी चलेगी बाती है



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