खुद का जाल
खुद का जाल
रेशम ही जान लेता है, शहतूत खाते कीड़े की !
क्यों शहतूत खाता है कीड़ा, आत्महत्या करने के लिए ?
या जीवन /मृत्यु से परे, पंहुचा कोई संत !
कीड़ो की तरह चिपके, महात्मा दम्भ भरते नहीं थकते,
संसार से विमुख होने का !
क्या जताना चाहते है ? घंटों पूजा करने से शुद्ध,
दो बातें करने से, कोई अशुद्ध !
मन को टटोलते रहते, पूजा / ध्यान करने वाले !
तो बेहतर होता, बहुत बेहतर !
मानुष, डरा हुआ , कच्ची डोर टूट जाने से !
डोर कच्ची नहीं ! फिर कैसा डर !
क्यों अविश्वास खुद पर, दूसरे से ज़्यादा !
विश्वास की नीवं में, सीमेंट भरा था ना ?
फिर किस बात की चिंता, किस बात की सोच !