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Mayank Kumar 'Singh'

Tragedy

2.5  

Mayank Kumar 'Singh'

Tragedy

आज फ़िर असफल रहा

आज फ़िर असफल रहा

1 min
379


आज फ़िर असफल रहा

जैसा होता आया था

वैसे ही आज फ़िर हुआ

मेरे उत्तर में कोई कशिश न था

तेरा अभिमान न बन पाया

आज फ़िर असफल रहा


क्या जीवन हैं मेरा भी

मरता हूं हर पल मैं

मुश्किल हैं चलना मेरा

फ़िर पथ पर कोई,

क्यों मैं चलता हूँ

बोलो ना तुम सांसे मेरी

अब न मुझसे आशा बांधों

मैं न तेरा अभिमान बना

आज फ़िर असफल रहा


बातों-बातों में कई बातें

उन बातों में कई रातें

सब रातों में एक सपना था

सपना में एक अपना था

उसका भी न मैं सम्मान बना

मैं न तेरा अभिमान बना

आज फ़िर असफल रहा


हक़ीक़त भी सपना होता हैं ?

या सपने सब हक़ीक़त होते हैं !

कैसे, मैं तुमको बतलाऊं ?

जहां जीकर भी मैं रोज मरा

मैं न तेरा अभिमान बना

आज फ़िर असफल रहा।


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