क्या तुम्हें पता है?
क्या तुम्हें पता है?
विकास की आँधी में
मेरे प्यारे, खूबसूरत, रंगीले
पंख सेमल के रूई की तरह
झर रहे हैं,
बेसमय, बेवजह।
क्या तुम्हें पता है?
मेरे मधुर गीत-संगीत विकास की शोर में
कहीं गुम हो रहे हैं,
सदा के लिए।
क्या तुम्हें पता है?
मेरा आशियाना टूट रहा है,
मेरी जिन्दगी खप रही है,
विकास की धूल में।
क्या तुम्हें पता है?
कट रहे हैं बुजुर्ग पेड़
हसदेव जंगल के
फरमान जारी है और लाखों पेड़ काटने के
दुनिया का सबसे अमीर आदमी
बनने का खेल जारी है एकतरफ।
दूसरी ओर "हसदेव बचाओ" की गूँज
सुनी जा सकती है हसदेव में,
लेकिन किसी को सुनाई नहीं भी दे रही है या
नहीं सुनने का नाटक भी कर रहे होंगे।
क्योंकि वे पसंद नहीं करते होंगे
आजाद पंछियों को
खुले आसमान में स्वछंद विचरते हुए ।
शायद उन्हें पसंद है उन्हें चिड़ियाघरों में
कैद करके देखना
या उनकी तस्वीर उतारकर उन्हें निहाराना।
"हसदेव बचाओ" की कहानी नहीं है नई
इतिहास पुराना है जंगलों को बचाने का संघर्ष।
हजारों सालों से जंगल में रहते आदिवासी
समझते हैं जंगल होने का मतलब
समझते हैं नदी का मतलब
केवल उनके अस्तित्व का सवाल नहीं
पूरे मानव सभ्यता का सवाल है!
क्या तुम्हें पता है?
जानते हैं वे जल, जंगल, जमीन खोने का दर्द
अपने गाँव के किनारे डैम होते हुए भी
डैम से पानी उनके घर नहीं आता।
भटकते हैं पानी के लिए यहाँ-वहाँ।
अपनी जमीन खोते ही
बन गये शहर के मजदूर पीढ़ी दर पीढ़ी।
इसीलिए हर बार 'हसदेव बचाओ' संघर्ष की कहानी
दुनिया के हर कोने में
अलग-अगल समय में चलती रहती है।
संघर्ष चलता रहता है अविराम पीढ़ी दर पीढ़ी
और विकास की आँधी से जूझते रहते हैं आदिवासी!
क्या तुम्हें पता है ?