प्यार की भाषा
प्यार की भाषा
प्यार की भाषा दम तोड़ने लगती है
मेरे पास आते-आते
रोती वह प्यारी बच्ची यह कहते-कहते
'कौन हूं मैं' पूछने लगती है अपने -आप से
लेकिन समझ नहीं पाती है वह इस राज को
संसार में अपने अस्तित्व को
प्यार की परिभाषा क्यों अलग होती है उसके लिए
शब्द क्यों बदलने लगते है उसके लिए
'मेरा प्यारा राजा' सुनती है जब वह अपनी मां से
यह संबोधन अपने छोटे भाई के लिए
फर्क महसूस करती है वह
क्योंकि मां का संबोधन कुछ जुदा होता है उसके लिए
जैसे ऐ लड़की!
परायेपन की बू निकलती है मां के मुख से
क्या मैं प्यार का एक तोहफा नहीं ?
सवाल करना चाहती है वह अपनी मां से, पिता से
लेकिन सवाल के जबाब मौन हो जाते हैं
उपेक्षा के अंधेरे गलियों में!
लेकिन नहीं थकती है वह सवाल पूछते
अपने समाज,दुनिया से।
क्यों कीमत अदा करना पड़ता है एक लड़की को
अपने घर में, पड़ोस के गलियों में।
शहर के आम सड़कों में
सुनसान पगडंडियों में
भीड़-भाड़ वाले बाजारों में
देह- व्यापार के मंडियों में
अपने पति के घर में
प्यार की भाषा दम तोड़ने लगी है अब भी
उसके औरत बन जाने पर
रिश्तों के साहिलों पर।
क्या मैं प्यार का एक अनमोल तोहफा नहीं?
यह सवाल करते-करते वह दम तोड़ रही है रोज़
वह गुमनाम, बेनाम अस्तित्व किसी गुमनाम शहर, गांव, बस्ती में !